मेरी असफल प्रेम कहानियों की नायिकाओं,
आज मेरे जीवन में नहीं होते हुए भी तुम मेरे जीवन का अहम् हिस्सा हो. तभी तो इतनी रात गए पैरों को कंपकपा देने वाली सर्दी में भी तुम्हारे लिए ये लिख रहा हूँ. लिखने का ख़याल मुझे व्हाट्सएप पर एक मेसेज में किसी का ख़त पढ़ते-पढ़ते आया जो चार्ली चैपलिन ने अपनी बेटी को लिखा था. फ़र्क ये है कि वो ख़त चार्ली की बेटी ने पढ़ा था. इसे तुम पढ़ोगी या नहीं, ये नहीं जानता. बीसवीं सदी का ये इक्कीसवां साल 5 दिन बाद ख़त्म हो जाएगा और मेरी असफल प्रेम कहानियाँ जो बीसवीं सदी के पांचवे साल से शुरू हुईं थीं, वो साल के पहली तारीख को 5 दिन और पुरानी हो जायेंगी. स्कूल के वक़्त की प्रेम कहानी को अगर शामिल किया जाए तो फिर मैं 19 वीं सदी के अंत के सालों का ब्योरा भी दे सकता हूँ. तब तो व्हाट्स एप भी नहीं था. लेकिन प्रेम था. जिसे बड़े-बूढ़े तब भी आकर्षण ही कहते थे और आज भी वो उसे वही मानते हैं. लेकिन उन्हें प्रेम और आकर्षण में अंतर इसलिए नहीं पता क्यूंकि उन्होंने दुनिया को सिर्फ़ देखा है. महसूस नहीं किया. अगर वो महसूस करना जानते तो आज हम सबके हालात कुछ और होते. प्रेम तो वहीं से शुरू होता है न जब आप किसी के लिए अपने भीतर कुछ महसूस करना शुरू करते हैं. फ़िल्मों की बात करें तो प्यार एक बार ही होता है. लेकिन मैं इस फिलोसफी को नहीं मानता. क्यूंकि अगर मैं अपने दिल पर हाथ रखता हूँ तो वो मुझे एक-एक करके तुम सबकी बारी-बारी से याद दिलाता है. लेकिन आज इसकी ज़रूरत क्यूँ पड़ गयी? मेरा मतलब ये ख़त लिखने की? क्यूंकि मैं अपना 35वाँ जन्मदिन मना चुका हूँ और शायद इस बात को मानने का भी मन बना चुका हूँ कि अब प्रेम नहीं हो पायेगा. 35 का हो गया हूँ इस वजह से? नहीं नहीं… उम्र प्रेम के लिए कभी बंधन नहीं रही. तब भी नहीं थी जब मैं 18 का था और तुम 28 की, कॉलेज के डायरेक्टर ने अगर टांग न अड़ाई होती और तुम्हें मेरे बारे में बरगलाया नहीं होता तो आज शायद ये लिखने की प्रेरणा नहीं मिलती. या शायद फिर भी लिख रहा होता क्यूंकि तुमने बताया था कि घरवाले इस रिश्ते के लिए नहीं मानेंगे. एक दोस्त को उसकी प्रेयसी से मिलाने के चक्कर में हमारे बीच में दूरियाँ आ गयीं. तुम्हें पता है, इस वक़्त भी मुस्कराहट है चेहरे पर जैसे उस वक़्त हुआ करती थी तुम्हें देखने के बाद. ये व्हाट्सएप और मेसेंजेर जैसी टेक्नोलॉजी भी हमारी बात दुबारा शुरू न करवा पायीं. खैर, मैं तभी समझ गया था कि प्रेम कभी भी हो सकता है.ये बात दुनिया तब भी समझती थी लेकिन कहती नहीं थी. क्यूंकि तब प्रेम करने वाले प्रेम को क्रान्ति की तरह मानते थे और छुप-छुपाकर ही उसे अंजाम देते थे. हालाँकि बीसवीं सदी में लोगों ने खुले दिल से ये एलान कर दिया कि प्रेम किसी को किसी से भी हो सकता है. यानि स्त्री को स्त्री से और पुरुष को पुरुष से. किन्तु दुनिया के बहुत सारे लोगों के लिए अभी भी अस्वाभाविक है. क्यूंकि प्रेम के अलावा दुनिया में और भी तत्त्व हैं, जिसे हम परिवार, समाज, इज्ज़त जैसे नामों से जानते हैं. हालांकि कुछ लोग अगर इससे ऊपर उठ भी जाते हैं तो उन्हें वंश की चिंता सताती है. क्यूंकि वंश तो तभी आगे बढेगा न जब स्त्री और पुरुष का मिलाप होगा. उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता की मन से मन का, हृदय से हृदय का, विचारों से विचारों का मिलन हो न हो या आपके भीतर सामने वाले के प्रति कोई भावनात्मक लगाव पैदा हो न हो. लेकिन दोनों के संसर्ग से एक शिशु अवश्य होना चाहिए. वैसे तुमने क्या पैदा किया? बेटा? बेटी? या कोई रिश्ता जो पति-पत्नि की परिभाषा से बाहर हो? ये सवाल यूँ ही पूछ लिए, ठीक लगे तो जवाब दे देना. वैसे इन यूँ ही सवालों के अलावा एक बड़ा महत्त्वपूर्ण सवाल है कि तुम एक ही समय में मेरे साथ-साथ किसी और से कैसे प्रेम कर बैठीं? ये महत्त्वपूर्ण इसलिए है क्यूंकि ये सवाल लाइफ के सिलेबस में रहा, तीन बार पूछा भी गया लेकिन हमेशा अनुत्तरित ही रहा. तीसरी बार में जो जवाब मिला वो संतोषजनक नहीं था और तीसरी बार में दुनिया भी दस साल आगे बढ़ चुकी थी. सोशल मीडिया और डेटिंग एप्स के ज़माने में कोई आपके अलावा किसी और से प्रेम कर बैठे ये कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन मेरे लिए हमेशा से ये बड़ी और विवाद उपजाने वाली बात रही. तुम स्पेस के नाम पर लोगों से मिल-जुलती रहीं, जिसके बारे में मुझे तब पता चला जब किसी बात को लेकर हमारा झगड़ा हुआ. बाद में किसी तीसरे से भी. तो ये प्रेम में दो के अलावा तीसरा कब आता है? इसका जवाब तुमने दिया, जब आप अपने साथी को समय नहीं दे पाते. भले ही आप जिसे बहुत ज़रूरी काम समझकर कर रहे हैं वो आपके साथी के लिए “हाँ ठीक है” का स्तर रखता है. लेकिन मैंने तो तुम्हारे सपने को अपने सपने की तरह माना, मुझे समय न देने के बाद भी मैं तुम्हें लेकर दृढ़ रहा. तुमसे तो मैंने कोई शिकायत नहीं की. लेकिन मेरी व्यस्तता को वजह बनाकर, बात बंद होने पर तुम किसी तीसरे को भी ले आयीं. मैं मानता हूँ कि संसार परिवर्तनशील है और लोग प्रयत्नशील. एक समय में आप क्या-क्या संभाल सकते हैं. घर, करियर, जॉब, प्रेम, मित्रता, कर्तव्य आदि-आदि. लेकिन सामनेवाले के पास ज़रूरी नहीं है कि इतनी ही ज़िम्मेदारी हो? हो सकता है उसकी आपसे सिर्फ कुछ व्यक्तिगत इच्छाएं हों. जिन्हें पूरा न कर पाने पर प्रेम शिफ्ट हो सकता है. ये बात समझने में मुझे थोड़ा समझ लगा लेकिन मैं समझ गया कि जो सबसे भाग रहा हो वो आपके पास भी किसी कारणवश रुका हुआ है. इस बात में बड़ा विरोधाभास है लेकिन अब सच मालूम पड़ती है कि जो परिवार की अहमियत जानते हैं वही प्रेम की अहमियत भी समझ सकते हैं. आप किसी और से मिलने वाले इमोशंस से, किसी और से मिलने वाले इमोशंस की पूर्ति नहीं कर सकते. और जीवन में हमें किसी का पूरक ढूंढना भी नहीं चाहिए. क्यूंकि इससे उसकी वास्तविकता खो जाती है. हम ये कभी नहीं जान पाते कि जिसे हमने किसी और के स्थान पर रखा हुआ था, वो हमारे लिए क्या हो सकता था. और तुम गयीं भी तो उस बात को वजह बनाकर जो ख़ुद तुम्हारी दी हुयी थी. वही, तुम्हारी व्यस्तता. तुमने बात बंद कर दी तो मैं किससे बात करता? दीवारों से? और फिर तुम्हारे जवाब भी तो खून खौलाने वाले होते हैं. जिसमें किसी तीसरे का ज़िक्र तुम इतनी सहजता से कर देती हो जैसे मुझे उस बात को सुनकर कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा. भावनाएं मेरी भी आहत होती हैं. मैं ये दिखावा नहीं कर सकता कि मैं पुरुष हूँ तो मुझे तुम्हारे तौर-तरीकों, बातचीत और व्यवहार से समस्या नहीं होती. होती है, बिलकुल होती है. जिसे मैं व्यक्त करना ज़रूरी भी समझता हूँ. ये जो तुमने कहा था कि तुम्हारे 24वें जन्मदिन में इसलिए नहीं आ पायी क्यूंकि ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल पायी. इस बात पर मैं इतना नाराज़ हुआ कि तुमसे सारे लगाव टूट गए. और टूट गया वो रिश्ता भी जो हमने यहाँ साथ रहते हुए गढ़ा था. सालों बाद जब मैं तुम्हारे शहर आया तो तुमने तुम्हारे प्रेम की ख़ातिर मुझसे मिलने मेरे ऑफिस के बाहर आती रहीं. जहाँ तुम्हारी आँखें उसे ढूंढ रही होती जो तुम्हारे दिल में था लेकिन तुम्हारे शहर में रहते हुए तुम्हारी पहुँच से बाहर था. तब समझ आया कि प्रेम दूर-पास जैसी व्यवहारिकता भी देखता है. तुम्हारे बाद एक व्यवहारिकता मुझे तुमने भी बतायी कि प्रेम आर्थिक सुरक्षा और भविष्य भी देखता है. ये सवाल लाइफ के सिलेबस में दो बार आया और दो बार ही पूछा गया. लेकिन इसका भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला. वैसे एक जवाब मैंने भी नहीं दिया, वो मैं कह रहा था न कि मैं अपना 35वाँ जन्मदिन मना चुका हूँ और शायद इस बात को मानने का भी मन बना चुका हूँ कि अब प्रेम नहीं हो पायेगा. क्यूंकि अब मैं ख़ुद में रहने लगा हूँ. अब मैं किसी का ज़हन नहीं ढूंढता. पहले तो सफ़र में ही रहा करता था लेकिन अब जड़ें एक जगह जमने लगी हैं. इसलिए कह रहा हूँ की अब प्रेम नहीं हो पायेगा, फिर भी अगर हुआ तो तुम्हें ज़रूर बताऊँगा.
“मैं”
(कई असफल कहानियों का मुख्य पात्र जो अनिश्चितताओं में अपना जीवन जीता है.)
26 दिसंबर 2021, मध्य रात्रि 02:13
जबलपुर